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इक तेरे छूने से खिल जाता है, मुरझाया हुआ मन का उपव

इक तेरे छूने से खिल जाता है,
मुरझाया हुआ मन का उपवन..!

ख़ुशियों के कमल मुस्कुरा रहे हो,
जैसे तेरा कोमल बदन..!

चल रही हो पुरवाई,
जीने मरने की जो कसमें खाई..!

जीवन का राग सुना कर,
तृप्त हो रहे आँगन..!

शहर शहर हर पहर,
क़हर हुस्न का झेले बाँवरा मन..!

ज़िन्दगी की डोर न हो कमज़ोर,
इश्क़ हो अपना इतना पावन..!

शास्त्रों के अनुसार,
करें मोहब्बत का प्रचार..!

प्रेम को आधार बना जो,
करने पड़े न ज्यादा जतन..!

तुम बनो धरा मैं बनूँ आसमाँ,
मिल कर बनायें अपना वतन..!

बाँध कर रिश्तों के बँधन में ख़ुद को,
पवित्र करायें चलो हवन..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #Hum #upwan