आज शाम आज शाम ************ अंदाज बेहद जुदा सा था आज शाम का। रंग सूर्ख कुछ स्याह सा था आज शाम का। यूं समझने से समझ आती है कहां लकीरों की ज़ुबां। मंज़र-मंज़र इक शरारा सा था आज शाम का। ©सुधा भारद्वाज #आज_शाम #PoetInYou