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पल्लव की डायरी ढलती शाम ,ठहराव ला देती है लौट चलो

पल्लव की डायरी
ढलती शाम ,ठहराव ला देती है
लौट चलो घोसलों में,आस जगा देती है
दौड़ धूप कर जो अर्जित किया है
लौट आने के इंतजार में परिवार रहता है
रात अगर चाँद ना सुलाये
भोर नयी स्फूर्ति मन और शरीर मे नही आती है
मौसमो का किया है दस्तक देकर चले जाते है
आसमान में सूर्य और चाँद ही है
 रोज आकर साथ निभाते है
जग व्यवस्थित चले
,इसलिये कभी छुट्टियां नही मानते है
                                            प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
  जग व्यवस्थित चले,कभी छुट्टियाँ नही मानते है
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