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जागती रातें, चीखते सन्नाटे बोलती ख़ामोशी, थिरकती उं

जागती रातें, चीखते सन्नाटे
बोलती ख़ामोशी, थिरकती उंगलियाँ
कोई गहरी सोच, कोई उथला बहता समंदर
कहीं बाज़ार की भीड़, तो कहीं चाय पर पसरी हुई शांति
क्यों हो जाते हैं ये सभी बेवस एक प्रेम के लिए जो इस दुनियां से परे का हो॥

©Death_Lover
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