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ये मेरे वो जज्बात है जो आज के समाज की रूप रेखा को

 ये मेरे वो जज्बात है जो आज के समाज की रूप रेखा को दर्शाते हैं जहाँ होड़ लगी हुई है प्रकृति के सभी उपहारों को निगलने की,,,ये समाज वो समाज है जो शिक्षा से अभी बहुत दूर है,ये वो समाज है जिसमे अपनी जननी की इज्जत नही,ये वो समाज है जो धर्म की पट्टी भांदे हथियार उठा लेता है अपने ही भाई बंधुओ पर,,
ये वो समाज है जो अपने आने वाले समय को 
तोफे में ये सब सीख दे रहा है जो ये सीधे संकेत देता है,,
की
कागज का घर बना के 
बच्चो के हाथ मे माचिस 
नही दिया करते,,,,
जो मशाल तुमने आज जलाई है
 ये मेरे वो जज्बात है जो आज के समाज की रूप रेखा को दर्शाते हैं जहाँ होड़ लगी हुई है प्रकृति के सभी उपहारों को निगलने की,,,ये समाज वो समाज है जो शिक्षा से अभी बहुत दूर है,ये वो समाज है जिसमे अपनी जननी की इज्जत नही,ये वो समाज है जो धर्म की पट्टी भांदे हथियार उठा लेता है अपने ही भाई बंधुओ पर,,
ये वो समाज है जो अपने आने वाले समय को 
तोफे में ये सब सीख दे रहा है जो ये सीधे संकेत देता है,,
की
कागज का घर बना के 
बच्चो के हाथ मे माचिस 
नही दिया करते,,,,
जो मशाल तुमने आज जलाई है

ये मेरे वो जज्बात है जो आज के समाज की रूप रेखा को दर्शाते हैं जहाँ होड़ लगी हुई है प्रकृति के सभी उपहारों को निगलने की,,,ये समाज वो समाज है जो शिक्षा से अभी बहुत दूर है,ये वो समाज है जिसमे अपनी जननी की इज्जत नही,ये वो समाज है जो धर्म की पट्टी भांदे हथियार उठा लेता है अपने ही भाई बंधुओ पर,, ये वो समाज है जो अपने आने वाले समय को तोफे में ये सब सीख दे रहा है जो ये सीधे संकेत देता है,, की कागज का घर बना के बच्चो के हाथ मे माचिस नही दिया करते,,,, जो मशाल तुमने आज जलाई है