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"नवदुर्गा के नव स्वरूप"स्त्री के सम्पूर्ण जीवन को

"नवदुर्गा के नव स्वरूप"स्त्री के सम्पूर्ण जीवन को आलोकित करनेवाले नव बिम्ब हैं।

1. जन्म के साथ स्त्री को प्राप्त कन्या रूप *"शैलपुत्री"* स्वरूप है । इसीलिए सभी वर्ग सभी जाति की कन्याओं का हम इसी रूप में कन्या पूजन करते हैं। कन्या पूजन में किसी जाति या वर्ग की कन्या में किसी प्रकार का कोई भेद नहीं किया जाता। हर कन्या देवी का पहला रूप है।

2.कन्या जब ब्रह्म अर्थात ज्ञान अर्थात वेद  अर्थात शिक्षा की चर्या  करने लगती है पढ़ने लगती है तब उसका यह पवित्र रूप ही देवी का *"ब्रह्मचारिणी"* स्वरूप है !

3. पूर्ण चंद्र के समान विद्या और यौवन की आभा से दमकता मुखमण्डल ,मदालसा मधुमती चाल में बज रहे नूपुर की मधुर मधुर ध्वनि में अविवाहिता में विवाह के आमंत्रण सा , औऱ  वधू में घर के सभी प्राणियों को नव नव स्नेह के उल्लास सा हो रहा घंटा नाद ही प्रफुल्लित पावन मना युवती देवी  *"चंद्रघंटा"* स्वरूप है !

4. नव जीवन को धरती पर उतारने के लिए गर्भ धारण कर यह सृष्टि की सर्जिका नारी ही देवी *"कूष्मांडा"* है ।

5. संतान को जन्म देकर अपने स्तनपान के साथ उसके लालन पालन में तन्मय वही स्त्री देवी *"स्कन्दमाता"* है ।

6. कुटुम्ब को अपने संयम व साधना से धारण करने वाली सभी कुटुम्बी जन का कष्ट हरण करती हुई, जीवन को उल्लसित करती स्त्री ही माँ  *"कात्यायनी"* स्वरूपा है ।

7. अपने संकल्प और शक्ति से अपनी संतानो, पति औऱ कुटुम्ब की रक्षा के लिए यह  मृत्यु  से भी लड़ जाने वाली देवी *"कालरात्रि"*  है ।

8. कुटुंब के साथ ही अतिथियों का सत्कार करती ,दुखियों पर दया करती , लोक हित में संलग्न यह देवी *"महागौरी"* हो जाती है ।

9 धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार मे अपनी सेवा में रत संतानों को समस्त सुख-संपदा का सदासिद्ध आशिर्वाद देने वाली सती साध्वी वृद्धा स्त्री ही देवी  *"सिद्धिदात्री"* हो जाती है ।

दुर्गा सप्तशती में नारी में विद्यमान  देवी के इन नव रूपों का स्मरण इस प्रकार से है

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना।

©Sunil Singh
  # सनातन संस्कृति संवाद एवं
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Sunil Singh

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