आज फिर एक भाई की सुनी रह गयी कलाई , कोशिशें लाख करने पर भी छूटी हाथ न आई! मांगी जब छूटी अपने साहब से मुस्कुरा उसने , साहब ने अपनी तानाशाही फरमान दिखाई !! आज फिर एक भाई की सुनी रह गयी कलाई ..... उसने नम्र भाव से बोला मेरी भी एक बहना है , राखी पर आ जाना भैया , उसका यही कहना है ! आंखे निचे कर के साहब सुनने से इनकार किया , अभी काम बहुत है बोल के उसे बाहर निकाल दिया !! भारी मन से निकला वहां से, फोन लगाया अपनी माँ को , नहीं आ पाएंगे राखी पर , बता देना मेरी बहना को ! रात में गाड़ी सोचकर पकड़ना , थोड़ी सी तो दुरी है , रच्छा कवच से भी ज्यादा क्या तेरी मज़बूरी है !! तेरे न आने से तेरी बहना की आँशु भर आई .!!! आज फिर एक भाई की सुनी रह गयी कलाई ....... इसबार मैं न आ सका अगली बार मैं आऊंगा , अगली बार दोनों हाथो में दो साल की राखी बँधवाउंगा ! यही सोचकर एक भाई ने उस पल को भी भुला दिया , इस नौकरी ने ख़ुशी के दिन भी हमको तो सिर्फ रुला दिया !! इस बार भी हाथ कुछ न आया और बड़ा जख्म कुरेद दिया , साहब ने एक छूटी के लिए कुत्ते के भाती हमें खरेद दिया !! कब सुलझेगी मेरी हर साल की यही है पहेली ...... आज फिर एक भाई की सुनी रह गयी कलाई ...... :- संतोष 'साग़र' आज फिर एक भाई की सुनी रह गयी कलाई , कोशिशें लाख करने पर भी छूटी हाथ न आई! मांगी जब छूटी अपने साहब से मुस्कुरा उसने , साहब ने अपनी तानाशाही फरमान दिखाई !! आज फिर एक भाई की सुनी रह गयी कलाई ..... उसने नम्र भाव से बोला मेरी भी एक बहना है , राखी पर आ जाना भैया , उसका यही कहना है ! आंखे निचे कर के साहब सुनने से इनकार किया ,