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एक समै मुरली धुनि में,रसखानि लियो कहूँ नाम हमारौ !

एक समै मुरली धुनि में,रसखानि लियो कहूँ नाम हमारौ !
ता दिनसे परि बैरी विसासिनी, झांकन देत नहीं है दुआरो !!
होंठ चबाब बचाओ सु क्यों करि, आनेहुँ भेंटीयें प्राननि प्यारौ !
दृष्टि परी तबाही अटकौ,चटकौ हियरौ पियरौ पटवारौ !!
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क्रमशः----03😊☺🍫🍵🐦🐇 🐦🍫#शिक्षा🍵😍#संस्कार🍀🍀#ज्ञान🐰🍀💕#अध्यात्म😙😙🐿#बृजधाम☕🌧😙😀#कर्म😍🍫🍵🐦🐇#धर्म☕🐿🐿🍵🐦
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क्या प्रत्येक व्यक्ति को जीवन का यह सार शिक्षा में नहीं दिया जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर अंश है। जो बात ईश्वर पर लागू होती है, व्यक्ति पर भी लागू होती है। वह पुरुष है। उसे कर्म लिप्त नहीं करते। मुझे क्यों करने चाहिएं। (4-13)

मेरा निवेदन है कि शिक्षा को समग्रता का साधन बनाना चाहिए। केवल अर्थार्जन से अधूरा मानव बनता है। मां ने भी गर्भ में अभिमन्यु बनाना बंद कर दिया। तब मानव शरीर में कहीं भी मानव नहीं दिखने वाला। जैविक देह अवश्य मानव की होगी, भीतर आत्मा के संस्कार तो मानव के नहीं हो सकते। तब मानव समाज का नया स्वरूप क्या बनेगा? शिक्षा का लक्ष्य इसी समाज के स्वरूप पर टिका होना चाहिए। आज जो कुछ परिदृश्य दिखाई दे रहा है, जो कुछ हिंसा, अतिक्रमण, अनुशासनहीनता या अनाचार दिखाई पड़ रहा है, उसका कारण अपूर्ण या आंशिक शिक्षा ही है। बौद्धिक क्षमता का विकास अहंकारग्रस्त कर रहा है, मानवता को। जो मन का प्रेम, जुड़ाव का मार्ग है, वह बंद होता जा रहा है। विकसित देशों में संवेदनहीनता सर्वत्र उपलब्ध है। कहीं बंधुत्व, सहिष्णुता, सह अस्तित्व अथवा वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा अस्तित्त्व में नहीं है। नई तकनीक में चर्चा अवश्य है इनकी।

शिक्षा का एक लक्ष्य जीवन में शान्ति की स्थापना भी है। शान्ति बाहर नहीं मिलती। वहां तो अशान्ति है। शान्ति को भीतर, आत्मा के धरातल पर खोजना पड़ता है। इसके बिना भी जीवन में कुछ न कुछ अभाव रह जाता है। इसकी पूर्ति वर्तमान शिक्षा से नहीं होती। बौद्धगया के एक मैत्रेय मिडिल स्कूल में आध्यात्मिक ज्ञान के सहारे इस कमी को पूरा किया जाता है। स्कूल के संस्थापक इतालवी हैं-वेलेण्टिनो जियाकोमिन। बच्चों को नर्सरी से ही ध्यान करना सिखाते हैं। वेलेण्टिनो का निश्चित मत है कि पतंजलि की शिक्षा के अभ्यास से स्वत: ही भाषायी, तार्किक गणितीय, अन्तवैक्तिय, अन्तराव्यक्तिक, प्राकृतिक तथा संवेगात्मक बुद्धिमत्ता का विकास होता है।
☺😊😙🐦🍵🍵🐇🐿☕🍫🍫😍🍀💕🐰☁😚💓😀🐇🐦
एक समै मुरली धुनि में,रसखानि लियो कहूँ नाम हमारौ !
ता दिनसे परि बैरी विसासिनी, झांकन देत नहीं है दुआरो !!
होंठ चबाब बचाओ सु क्यों करि, आनेहुँ भेंटीयें प्राननि प्यारौ !
दृष्टि परी तबाही अटकौ,चटकौ हियरौ पियरौ पटवारौ !!
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क्रमशः----03😊☺🍫🍵🐦🐇 🐦🍫#शिक्षा🍵😍#संस्कार🍀🍀#ज्ञान🐰🍀💕#अध्यात्म😙😙🐿#बृजधाम☕🌧😙😀#कर्म😍🍫🍵🐦🐇#धर्म☕🐿🐿🍵🐦
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क्या प्रत्येक व्यक्ति को जीवन का यह सार शिक्षा में नहीं दिया जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर अंश है। जो बात ईश्वर पर लागू होती है, व्यक्ति पर भी लागू होती है। वह पुरुष है। उसे कर्म लिप्त नहीं करते। मुझे क्यों करने चाहिएं। (4-13)

मेरा निवेदन है कि शिक्षा को समग्रता का साधन बनाना चाहिए। केवल अर्थार्जन से अधूरा मानव बनता है। मां ने भी गर्भ में अभिमन्यु बनाना बंद कर दिया। तब मानव शरीर में कहीं भी मानव नहीं दिखने वाला। जैविक देह अवश्य मानव की होगी, भीतर आत्मा के संस्कार तो मानव के नहीं हो सकते। तब मानव समाज का नया स्वरूप क्या बनेगा? शिक्षा का लक्ष्य इसी समाज के स्वरूप पर टिका होना चाहिए। आज जो कुछ परिदृश्य दिखाई दे रहा है, जो कुछ हिंसा, अतिक्रमण, अनुशासनहीनता या अनाचार दिखाई पड़ रहा है, उसका कारण अपूर्ण या आंशिक शिक्षा ही है। बौद्धिक क्षमता का विकास अहंकारग्रस्त कर रहा है, मानवता को। जो मन का प्रेम, जुड़ाव का मार्ग है, वह बंद होता जा रहा है। विकसित देशों में संवेदनहीनता सर्वत्र उपलब्ध है। कहीं बंधुत्व, सहिष्णुता, सह अस्तित्व अथवा वसुधैव कुटुम्बकम् की अवधारणा अस्तित्त्व में नहीं है। नई तकनीक में चर्चा अवश्य है इनकी।

शिक्षा का एक लक्ष्य जीवन में शान्ति की स्थापना भी है। शान्ति बाहर नहीं मिलती। वहां तो अशान्ति है। शान्ति को भीतर, आत्मा के धरातल पर खोजना पड़ता है। इसके बिना भी जीवन में कुछ न कुछ अभाव रह जाता है। इसकी पूर्ति वर्तमान शिक्षा से नहीं होती। बौद्धगया के एक मैत्रेय मिडिल स्कूल में आध्यात्मिक ज्ञान के सहारे इस कमी को पूरा किया जाता है। स्कूल के संस्थापक इतालवी हैं-वेलेण्टिनो जियाकोमिन। बच्चों को नर्सरी से ही ध्यान करना सिखाते हैं। वेलेण्टिनो का निश्चित मत है कि पतंजलि की शिक्षा के अभ्यास से स्वत: ही भाषायी, तार्किक गणितीय, अन्तवैक्तिय, अन्तराव्यक्तिक, प्राकृतिक तथा संवेगात्मक बुद्धिमत्ता का विकास होता है।
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