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फूल है खुशबू के बिखरी इक शाम ज़ख्म कोई नसूर सा सम्

फूल है खुशबू के बिखरी इक शाम 
ज़ख्म कोई नसूर सा सम्हाले ज़ाम
आ आकर मुस्करा फिर वो चल दिये
अश्क़ जो बिखरे खाक सम्हाले राज़
फूल है खुशबू के बिखरी इक शाम 
ज़ख्म कोई नसूर सा सम्हाले ज़ाम
आ आकर मुस्करा फिर वो चल दिये
अश्क़ जो बिखरे खाक सम्हाले राज़