मेला ...... देखो मेले नखराली नार चलीं, उसे पिया दरश की आश जगी, देखो मेले नखराली नार चलीं, पैरों में पायल हाथों में कंगन, माथे पे बिंदिया सजी, देखो मेले नखराली नार चलीं, खन-खन खन-खन कंगन बाजे, छन-छन करती पाजेब बजी, हिरणी जैसी चाल चली, देखो मेले नखराली नार चलीं, लाल रंग की ओढ ओढ़नी, आधे मुख घुंघट ढकी, अधरो पे उसके मुस्कान सजी, वो पिया मिलन की आश जगी, देखो मेले नखराली नार चलीं , चली रे चली देखो, पिया की प्रियतमा चलीं, नैनो को उनके प्यास लगी, घड़ी पलक हुआ ना मिलन, चुप-चुप के बस निहार रही, वो नजरों की प्यास बुझा रही, देखो मेले नखराली नार चलीं, सखी सहेलियां गीत है गाती, वो गीतों में पिया को बुला रही, देखो मेले नखराली नार चलीं, उस मेले पिया मिलन आश जगी..! ©Manak desai खम्मा घणी सा ❣️🤗🙏 राम राम सा ❣️🤗🙏☕☕☕☕ आपका माणक पुनः उपस्थित हैं , और चाय भी लाया हूँ पीनी ही पड़ेगी क्योंकि ये तो हम मारवाड़ीयो के घर आएं मेहमानों को करने वाली मिठी मनुहार है ❣️🤭🤭☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕☕ आज कुछ और लेकर आया हूँ तो देखिए पढ़िए और बताइए क्या ये सही लिखा है,😊❣️ आज जो लिख रहा हूँ ये मैं एक मेले के बारे में लिख रहा हूँ जहां बहुत लोग एकत्रित होते हैं और वहां एक दूसरे से मिलते हैं ❣️🤗🙏 तस्वीर ली है गुगल से, पर जो चाहिए थी वो नहीं मिली 😐😐😐😐 पर जो २० वर्ष पूर्व मेले होते थे वे अभी नहीं रहें