डर डर के कब तक जीना है कङवा घूँट कब तक पीना है होटों को कब से सिले है कह दे जो शिकवे गिले हैं अपनी अनदेखी सह रहा है मुख से उफ नहीं कह रहा है यह तो तेरी बुजदिली है यह विरासत मे ना मिली है तेरे अंदर की भय पीङा है तुझसे ही पैदा तुझमे पली है पुष्पेन्द्र "पंकज " ©Pushpendra Pankaj भय का भूत