मंदी अपनी बंदी है अर्थ व्यवस्था लचर पडी है कारखानों में तालाबंदी है, फिर भी कहते बडे शौक से मंदी अपनीं बंदी है। नेता साहूकारों ने अब मिलकर कर ली संधी, छोटों का व्यापार बंद सरकार बनीं है अंधी। बड़े व्यापारी बड़े बनें हैं छोटे हो गये बौने, गधे पंजीरी फांक रहे हैं खेलें खेल घिनौनें। पाँच रुपये में डाटा मिलता तीस रुपये में आटा, नोट भरे सब भरी तिजोरी फिर भी है सब घाटा। झूठों के तो बड़े बोल हैं सच्चे पर पाबंदी, राजा के घर रोज दिवाली रंक के घर में मंदी। आशीष शुक्ला #मंदी अपनीं बंदी है