कविता शब्दों की भीड़ में कहीं वर्ण खो गया पद जन्मा और फ़िर शब्द खो गया वाक्यों के जंगल में पद जो खोया कविताओं के ढेर में वाक्य खो गया भाव युक्त होना था कविता को मगर अलंकारों के झुंड में वो भाव खो गया अलंकारों का हुआ आधिक्य इतना कि एक के पीछे दूजा खो गया भावशून्य सी हो रह गई कविता अति सजी धजी सी हो गई कविता सौन्दर्य का रस पर हुआ अतिक्रमण और रसविहीन हो गई कविता ©के मीनू तोष (१० अप्रैल २०१९)