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नब्ज़ जम गई आज फिर देश की, चैन की नींद कैसे देश सो

नब्ज़ जम गई आज फिर देश की,
चैन की नींद कैसे देश सो पायेगा।
कितने रिश्तों ने एक साथ आज दम तोड़ा,
कैसे उस दर्द का अंदाज़ा भी हो पायेगा।
तड़पेंगे जितना भी, बिलकेंगे जितना भी,
वापस तुम अब कभी नहीं आओगे।

पर आगाज़ जो है ये युद्ध का तो,
सुन लो ओ बुज़दिलों मौत से बत्तर मौत तुम पाओगे। बस अब और नहीं। मेरे देश के जवानों का खून अब और नहीं।
नब्ज़ जम गई आज फिर देश की,
चैन की नींद कैसे देश सो पायेगा।
कितने रिश्तों ने एक साथ आज दम तोड़ा,
कैसे उस दर्द का अंदाज़ा भी हो पायेगा।
तड़पेंगे जितना भी, बिलकेंगे जितना भी,
वापस तुम अब कभी नहीं आओगे।

पर आगाज़ जो है ये युद्ध का तो,
सुन लो ओ बुज़दिलों मौत से बत्तर मौत तुम पाओगे। बस अब और नहीं। मेरे देश के जवानों का खून अब और नहीं।