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दोस्त-वजह यही, इन सांसों के, चलने की है।

दोस्त-वजह यही, इन सांसों के, चलने की है।
           कि उम्मीद बाकी, अभी तुमसे,मिलने की है ।।

चांद में भी देखते हैं हम तो,अक्स तेरा ही...
           परवाह कहां मुझे फिर, सूरज के ढलने की है।।

©Vinod Thakur
  #सांस