सूरज बन कर नूर जगा तू ढ़ंग रात का ढ़लना है लाँघ उफ़क़ की सब जागीरें आसमान पर चलना है सूरज चंदा छोड़ के पीछे नई खालाऐं चढ़नी हैं ऊपर से ऊपर क्या है राह वहीं अब बढ़नी है आफ़ताब का नूर हो फ़ीका शिद्दत से इतनी जलना है सूरज बन कर नूर जगा तू ढ़ंग रात का ढ़लना है बाँध के दुम पुच्छल तारे की अपनी आज कलाई पर नई कहकशाँ बुनते है जुर्रत की आज सलाई पर नई दिशाएँ नया फ़लसफ़ा कभी कोई तो है फलना है सूरज बन कर नूर जगा तू ढ़ंग रात का ढ़लना है ©Mo k sh K an #mokshkan #उदासियाँ_the_journey #mkpikb #beyond #new_thought #awakening #seeker