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सुनो प्रिय कॉमरेड, आज जब सुबह उठा तो मोबाईल पर "श

सुनो प्रिय कॉमरेड, 
आज जब सुबह उठा तो मोबाईल पर "श्री कृष्ण जन्मअष्टमी" का नोटिफिकेशन देखा तो नयनो मे तुम्हारे संग बीते इस पर्व से जुड़े कुछ किस्से प्रतिबिंब स्वरूप नजर आने लगे। तुम्हें याद है। वो जब हम झांकियां देखने शाम को मंदिरो में जाते थे। मंदिर के मुख्य द्वारा से मुख्य मूर्तीयो के बीच मे विभिन्न प्रकार की झांकियां होती थी। कृत्रिम बर्फ से ढके रास्तो पर जब हम एक दूसरे का हाथ पकड़ आगे बड़ते थे तो मैं सोचता था। काश ये रास्ते खत्म ही ना हो। वैसे रास्ते भी कभी कभी मंजिल बन जाते हैं। जब हमसफ़र अच्छा होता है । प्रेम के मानक कृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला ये पर्व बिन राधा के अपूर्ण सा लगता है। प्रेम हाँ यही तो था। मुझे तुमसे, तभी तो मैं गाता था । तुम्हारे लिए गीत और शेरों शायरियाँ, तुम्हें पता है। कॉमरेड, जिन शेर और शायरियों से मैं तुम्हें हंसाता और अपने प्रेम पाश में उलझाता  था। उस शायरियों को लिखने वाले राहत साहब आज हमे रुलाकर खुद को जीवन के  पाश से मुक्त कर पंचतत्व में विलीन हो गए। जीवन कितना छोटा है। ये देख कर लगता है। वैसे मुझे पता है कि तुम व्यस्त रहती हो जीवन की भाग दौड़ में पर याद रखना कहीं अपने ना छूट जाए आगे बड़ने की इस होड़ में, वैसे अगर आज हम दोनो अपने गाँव में होते तो साथ चलते उन बर्फ़ीले रास्तों पर झांकियो को देखते हुए ,जिन रास्तों पर मुझे तुम्हारा हाथ और साथ मुकम्मल था। सुनो मुझे आज भी याद है। शिमला जाने का तुमसे किया वादा, उम्मीद है। हम कभी वक्त निकाल पाएंगे और साथ जायेंगे।..... 
तुम्हारा दोस्त
... #जलज कुमार #Yaari सुनो प्रिय कॉमरेड, 
आज जब सुबह उठा तो मोबाईल पर "श्री कृष्ण जन्मअष्टमी" का नोटिफिकेशन देखा तो नयनो मे तुम्हारे संग बीते इस पर्व से जुड़े कुछ किस्से प्रतिबिंब स्वरूप नजर आने लगे। तुम्हें याद है। वो जब हम झांकियां देखने शाम को मंदिरो में जाते थे। मंदिर के मुख्य द्वारा से मुख्य मूर्तीयो के बीच मे विभिन्न प्रकार की झांकियां होती थी। कृत्रिम बर्फ से ढके रास्तो पर जब हम एक दूसरे का हाथ पकड़ आगे बड़ते थे तो मैं सोचता था। काश ये रास्ते खत्म ही ना हो। वैसे रास्ते भी कभी कभी मंजिल बन जाते हैं। जब हमसफ़र अच्छा होता है । प्रेम के मानक कृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला ये पर्व बिन राधा के अपूर्ण सा लगता है। प्रेम हाँ यही तो था। मुझे तुमसे, तभी तो मैं गाता था । तुम्हारे लिए गीत और शेरों शायरियाँ, तुम्हें पता है। कॉमरेड, जिन शेर और शायरियों से मैं तुम्हें हंसाता और अपने प्रेम पाश में उलझाता  था। उस शायरियों को लिखने वाले राहत साहब आज हमे रुलाकर खुद को जीवन के  पाश से मुक्त कर पंचतत्व में विलीन हो गए। जीवन कितना छोटा है। ये देख कर लगता है। वैसे मुझे पता है कि तुम व्यस्त रहती हो जीवन की भाग दौड़ में पर याद रखना कहीं अपने ना छूट जाए आगे बड़ने की इस होड़ में, वैसे अगर आज हम दोनो अपने गाँव में होते तो साथ चलते उन बर्फ़ीले रास्तों पर झांकियो को देखते हुए ,जिन रास्तों पर मुझे तुम्हारा हाथ और साथ मुकम्मल था। सुनो मुझे आज भी याद है। शिमला जाने का तुमसे किया वादा, उम्मीद है। हम कभी वक्त निकाल पाएंगे और साथ जायेंगे।..... 
तुम्हारा दोस्त
... #जलज कुमार
सुनो प्रिय कॉमरेड, 
आज जब सुबह उठा तो मोबाईल पर "श्री कृष्ण जन्मअष्टमी" का नोटिफिकेशन देखा तो नयनो मे तुम्हारे संग बीते इस पर्व से जुड़े कुछ किस्से प्रतिबिंब स्वरूप नजर आने लगे। तुम्हें याद है। वो जब हम झांकियां देखने शाम को मंदिरो में जाते थे। मंदिर के मुख्य द्वारा से मुख्य मूर्तीयो के बीच मे विभिन्न प्रकार की झांकियां होती थी। कृत्रिम बर्फ से ढके रास्तो पर जब हम एक दूसरे का हाथ पकड़ आगे बड़ते थे तो मैं सोचता था। काश ये रास्ते खत्म ही ना हो। वैसे रास्ते भी कभी कभी मंजिल बन जाते हैं। जब हमसफ़र अच्छा होता है । प्रेम के मानक कृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला ये पर्व बिन राधा के अपूर्ण सा लगता है। प्रेम हाँ यही तो था। मुझे तुमसे, तभी तो मैं गाता था । तुम्हारे लिए गीत और शेरों शायरियाँ, तुम्हें पता है। कॉमरेड, जिन शेर और शायरियों से मैं तुम्हें हंसाता और अपने प्रेम पाश में उलझाता  था। उस शायरियों को लिखने वाले राहत साहब आज हमे रुलाकर खुद को जीवन के  पाश से मुक्त कर पंचतत्व में विलीन हो गए। जीवन कितना छोटा है। ये देख कर लगता है। वैसे मुझे पता है कि तुम व्यस्त रहती हो जीवन की भाग दौड़ में पर याद रखना कहीं अपने ना छूट जाए आगे बड़ने की इस होड़ में, वैसे अगर आज हम दोनो अपने गाँव में होते तो साथ चलते उन बर्फ़ीले रास्तों पर झांकियो को देखते हुए ,जिन रास्तों पर मुझे तुम्हारा हाथ और साथ मुकम्मल था। सुनो मुझे आज भी याद है। शिमला जाने का तुमसे किया वादा, उम्मीद है। हम कभी वक्त निकाल पाएंगे और साथ जायेंगे।..... 
तुम्हारा दोस्त
... #जलज कुमार #Yaari सुनो प्रिय कॉमरेड, 
आज जब सुबह उठा तो मोबाईल पर "श्री कृष्ण जन्मअष्टमी" का नोटिफिकेशन देखा तो नयनो मे तुम्हारे संग बीते इस पर्व से जुड़े कुछ किस्से प्रतिबिंब स्वरूप नजर आने लगे। तुम्हें याद है। वो जब हम झांकियां देखने शाम को मंदिरो में जाते थे। मंदिर के मुख्य द्वारा से मुख्य मूर्तीयो के बीच मे विभिन्न प्रकार की झांकियां होती थी। कृत्रिम बर्फ से ढके रास्तो पर जब हम एक दूसरे का हाथ पकड़ आगे बड़ते थे तो मैं सोचता था। काश ये रास्ते खत्म ही ना हो। वैसे रास्ते भी कभी कभी मंजिल बन जाते हैं। जब हमसफ़र अच्छा होता है । प्रेम के मानक कृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला ये पर्व बिन राधा के अपूर्ण सा लगता है। प्रेम हाँ यही तो था। मुझे तुमसे, तभी तो मैं गाता था । तुम्हारे लिए गीत और शेरों शायरियाँ, तुम्हें पता है। कॉमरेड, जिन शेर और शायरियों से मैं तुम्हें हंसाता और अपने प्रेम पाश में उलझाता  था। उस शायरियों को लिखने वाले राहत साहब आज हमे रुलाकर खुद को जीवन के  पाश से मुक्त कर पंचतत्व में विलीन हो गए। जीवन कितना छोटा है। ये देख कर लगता है। वैसे मुझे पता है कि तुम व्यस्त रहती हो जीवन की भाग दौड़ में पर याद रखना कहीं अपने ना छूट जाए आगे बड़ने की इस होड़ में, वैसे अगर आज हम दोनो अपने गाँव में होते तो साथ चलते उन बर्फ़ीले रास्तों पर झांकियो को देखते हुए ,जिन रास्तों पर मुझे तुम्हारा हाथ और साथ मुकम्मल था। सुनो मुझे आज भी याद है। शिमला जाने का तुमसे किया वादा, उम्मीद है। हम कभी वक्त निकाल पाएंगे और साथ जायेंगे।..... 
तुम्हारा दोस्त
... #जलज कुमार

#Yaari सुनो प्रिय कॉमरेड, आज जब सुबह उठा तो मोबाईल पर "श्री कृष्ण जन्मअष्टमी" का नोटिफिकेशन देखा तो नयनो मे तुम्हारे संग बीते इस पर्व से जुड़े कुछ किस्से प्रतिबिंब स्वरूप नजर आने लगे। तुम्हें याद है। वो जब हम झांकियां देखने शाम को मंदिरो में जाते थे। मंदिर के मुख्य द्वारा से मुख्य मूर्तीयो के बीच मे विभिन्न प्रकार की झांकियां होती थी। कृत्रिम बर्फ से ढके रास्तो पर जब हम एक दूसरे का हाथ पकड़ आगे बड़ते थे तो मैं सोचता था। काश ये रास्ते खत्म ही ना हो। वैसे रास्ते भी कभी कभी मंजिल बन जाते हैं। जब हमसफ़र अच्छा होता है । प्रेम के मानक कृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला ये पर्व बिन राधा के अपूर्ण सा लगता है। प्रेम हाँ यही तो था। मुझे तुमसे, तभी तो मैं गाता था । तुम्हारे लिए गीत और शेरों शायरियाँ, तुम्हें पता है। कॉमरेड, जिन शेर और शायरियों से मैं तुम्हें हंसाता और अपने प्रेम पाश में उलझाता था। उस शायरियों को लिखने वाले राहत साहब आज हमे रुलाकर खुद को जीवन के पाश से मुक्त कर पंचतत्व में विलीन हो गए। जीवन कितना छोटा है। ये देख कर लगता है। वैसे मुझे पता है कि तुम व्यस्त रहती हो जीवन की भाग दौड़ में पर याद रखना कहीं अपने ना छूट जाए आगे बड़ने की इस होड़ में, वैसे अगर आज हम दोनो अपने गाँव में होते तो साथ चलते उन बर्फ़ीले रास्तों पर झांकियो को देखते हुए ,जिन रास्तों पर मुझे तुम्हारा हाथ और साथ मुकम्मल था। सुनो मुझे आज भी याद है। शिमला जाने का तुमसे किया वादा, उम्मीद है। हम कभी वक्त निकाल पाएंगे और साथ जायेंगे।..... तुम्हारा दोस्त ... #जलज कुमार