जैसे जैसे समय निकाला हमने खुद के लिए लोगों के काम की अर्जियां कुछ इस कदर आने लगी ख्वाब तो खुली आंखों से भी देख लेते हैं लोग पर नींदों में मुकम्मल होने के लिए आंख ही ना लगी उन्हीं ख्वाबों को पूरा करने के लिए हम टहल रहे थे छत पर एक दिन बस इन्हीं सपनों में डूबकर कब शाम से रात हुई हमें भनक भी ना लगी सभी अर्जियां कुबूल कर ली हमने सुबह से शाम कर दी हमने पर वह ख्वाब हकीकत नहीं हो रहा और ख्वाब को पाने में किसी की दुआ भी ना लगी