जन जन की बात सुनो सबों को बोलने दो मत रोको किसी को न अपने कान बंद करो। नये विचार पनपने दो स्वतंत मानव को स्वतंत होकर सोचने दो मत रोको किसी को न अपने विचार थोपो। सांस लेते हाड़ मांस को हर छन जिंदा होने दो मत रोको किसी को न किसी विचार की हत्या करो न किसी विचार की हत्या होने दो खुद को भी स्वतंत होने दो। विक्रम प्रशांत "टूटी पंक्तियाँ" #hindi_poetry स्वतंत विचार #tutipanktiyan #nojotohindipoetry #citysunset