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एक दो रोज में हर आँख ऊब जाती है, मुझको मंजिल नहीं

एक दो रोज में हर आँख ऊब जाती है,
मुझको मंजिल नहीं रास्ता समझने लगते हैं,
जिनको हासिल नहीं वो जान देते रहते हैं,
जिनको मिल जाऊं वो सस्ता समझने लगते हैं।

©BRAR BOYZ
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