गाँव की गलियां पूछ रही हैं कहाँ रहे तुम इतने दिन निम्मो की तो शादी हो गयी हार गयी थी दिन गिन गिन… बहुत देर तक रस्ता देखा गाँव को खुद पे हँसता देखा उसे यकीं था लौटोगे तुम पर तुम हो गए शहर में ही गुम टूट गयी फिर वो बेचारी इंतज़ार में हारी हारी खुद से खुद ही गयी वो छिन गाँव की गलियां पूछ रही हैं कहाँ रहे तुम इतने दिन… एक मोड़ से मिला था कल मैं उसके पास रुका इक पल मैं पूछा कैसे हो तुम भाई कैसे इतने साल बिताई मोड़ बुढा सा हुआ पड़ा था लेकिन फिर भी वहीँ खड़ा था मुझको वो पहचान न पाया मैंने अपना नाम बताया मोड़ ख़ुशी से झूम उठा तब पढ़ा है तेरे बारे में सब हो गए हो तुम बड़े आदमी इन्सां हो या फल हो मौसमी एक साल में एक ही फेरा गाँव में भी इक घर है तेरा निम्मो ये बोला करती थी रोज़ ही जीती थी मरती थी चली गयी वो अब तो लेकिन मोड़ भी मुझसे पूछ रहा है कहाँ रहे तुम इतने दिन… निम्मो गाँव की सड़क थी कच्ची जिसको मेरे बिन रोना ही था इक दिन पक्का होना ही था अच्छा हुआ की पक्की हो गयी गाँव में चलो तरक्की हो गयी हाँ पर मेरी निम्मो खो गयी… ©अरफ़ान भोपाली #गांव #गालियां #इश्क़ #कविता #शायरी #poetry #feelings #Nojoto #nojotohindi