जो अब भी कदर ना करोगे, तो, बन जायेगी तुम्हारा काल भी वो। जो भी लिखा है पूरे दिल और ईमान से लिखा है। ये पंक्तियाँ मैं एक बहुत खास इन्सान को समर्पित करता हूँ जिनकी वजह से ही ये मैं लिख पाया। अगर उन्होनें आग्रह ना किया होता तो शायद ये मेरे जज़्बात कभी सूरज की रोशनी ना देख पाते इस कविता के माध्यम से। आज समय की यहीं माँग है कि ज्वाला बनो, ईट का ज़वाब पत्थर से दो। सामने वाला दो गाली दे तो आप चार दो। उससे भद्दी-भद्दी गालियाँ दो। वो आपको घूरे तो जा के दो-चार थप्पड़ रसीद दो। अपने अन्दर की दुर्गा-काली को जगाओ। और जो हम मर्द हैं, हमें समझना होगा कि हमारी मर्या