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इक मंजिल है यारों सांसो को वही थक जाना है ना सुल

इक मंजिल है यारों 
सांसो को वही थक जाना है 
ना सुलाएेगा फिर कोई यारो 
महंगो बिस्तरों पे 
अरे मामूली सी चटाई पे
ये गलिब ,सस्ती से सस्ती 
चादर से मुझे ढका जाएगा

इक मंजिल है यारों सांसो को वही थक जाना है ना सुलाएेगा फिर कोई यारो महंगो बिस्तरों पे अरे मामूली सी चटाई पे ये गलिब ,सस्ती से सस्ती चादर से मुझे ढका जाएगा

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