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अज्ञान प्रमाद आलस्य को दूर भगाता है। स्मृति और क

अज्ञान  प्रमाद  आलस्य को दूर भगाता है।
स्मृति और कल्पनाओं को पंख लगाता है।

ध्वनियों से शुरू करता है अक्षर यात्रा को!
अक्षर से जोड़ अक्षर  नए शब्द बनाता है।

मन के अंधकार में जलता  है दीपक सा !
शिक्षक  रौशनी  से  मुलाक़ात  कराता है।

पत्थर को तराशने में  लग जाता शिल्पी !
वह भी कुछ इस तरह से मूरत बनाता है।

नादानी में तो नहीं समझे  अब जान गए!
'पंछी' क़र्ज़ ए मुदर्रिस चुकाया नहीं जाता है। अज्ञान  प्रमाद  आलस्य को दूर भगाता है।
स्मृति और कल्पनाओं को पंख लगाता है।

ध्वनियों से शुरू करता है अक्षर यात्रा को!
अक्षर से जोड़ अक्षर  नए शब्द बनाता है।

मन के अंधकार में जलता  है दीपक सा !
शिक्षक  रौशनी  से  मुलाक़ात  कराता है।
अज्ञान  प्रमाद  आलस्य को दूर भगाता है।
स्मृति और कल्पनाओं को पंख लगाता है।

ध्वनियों से शुरू करता है अक्षर यात्रा को!
अक्षर से जोड़ अक्षर  नए शब्द बनाता है।

मन के अंधकार में जलता  है दीपक सा !
शिक्षक  रौशनी  से  मुलाक़ात  कराता है।

पत्थर को तराशने में  लग जाता शिल्पी !
वह भी कुछ इस तरह से मूरत बनाता है।

नादानी में तो नहीं समझे  अब जान गए!
'पंछी' क़र्ज़ ए मुदर्रिस चुकाया नहीं जाता है। अज्ञान  प्रमाद  आलस्य को दूर भगाता है।
स्मृति और कल्पनाओं को पंख लगाता है।

ध्वनियों से शुरू करता है अक्षर यात्रा को!
अक्षर से जोड़ अक्षर  नए शब्द बनाता है।

मन के अंधकार में जलता  है दीपक सा !
शिक्षक  रौशनी  से  मुलाक़ात  कराता है।