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#मकान_या_घर .. --- भीड़ भरी उस गली में एक सुनसान इम

#मकान_या_घर ..
---
भीड़ भरी उस गली में
एक सुनसान इमारत है
ना जाने लोग उसे मकान क्यों कहते हैं
मेरे लिए तो वो आज भी घर है
दरवाजों और खिड़कियों पर एक धूल की चादर है
लाल पत्थरों के उस चबूतरे पर पत्ते ही पत्ते बिखरे हैं
लकड़ी के उस दरवाजे पर एक जंग लगा ताला लटका है
मैं जब भी उस छत पर निगाह उठाकर देखती हूं
किस्से-कहानियों में लिपटी यादें मुस्कुराकर नीचे झांकती हैं
ना जाने फिर भी लोग उस 'घर' को 'मकान' क्यों कहते हैं।  नीर.....
#मकान_या_घर ..
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भीड़ भरी उस गली में
एक सुनसान इमारत है
ना जाने लोग उसे मकान क्यों कहते हैं
मेरे लिए तो वो आज भी घर है
दरवाजों और खिड़कियों पर एक धूल की चादर है
लाल पत्थरों के उस चबूतरे पर पत्ते ही पत्ते बिखरे हैं
लकड़ी के उस दरवाजे पर एक जंग लगा ताला लटका है
मैं जब भी उस छत पर निगाह उठाकर देखती हूं
किस्से-कहानियों में लिपटी यादें मुस्कुराकर नीचे झांकती हैं
ना जाने फिर भी लोग उस 'घर' को 'मकान' क्यों कहते हैं।  नीर.....