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ज़िंदगी जोहद में है सब्र के क़ाबू में नहीं नब्ज़-ए

ज़िंदगी जोहद में है सब्र के क़ाबू में नहीं
नब्ज़-ए-हस्ती का लहू कांपते आंसू में नहीं
उड़ने खुलने में है निकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं
जन्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं यत्र नारियास्ते पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता
ज़िंदगी जोहद में है सब्र के क़ाबू में नहीं
नब्ज़-ए-हस्ती का लहू कांपते आंसू में नहीं
उड़ने खुलने में है निकहत ख़म-ए-गेसू में नहीं
जन्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं यत्र नारियास्ते पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता
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vippy

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यत्र नारियास्ते पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता