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नफरत के फूल जब से खिले हैं फूल बाग में,भौरें भी

नफरत के फूल

 जब से खिले हैं फूल बाग में,भौरें भी नाराज हो गए
 तितलियों ने भी आना छोड़ दिया मेरे बाग में
 कोयलों ने भी मुख मोड़ लिया मेरे बाग से
 खुशबू भी नहीं आती मेरे बाग से
 परियों ने ताकना छोड़ दिया
मेरे बाग को
लगता है किसी की नजर लग गई मेरे बाग को
 तभी तो सभी रूठ गए मेरे बाग से
 नहीं कोई पास आता है मेरे बाग के
 मैं भी बहुत परेशान हूंँ यह सोच-सोच कर
 क्या कोई खता है मेरे फूलों की या मेरे बागों की
 या मैं ही गुनहगार हूंँ उन फूलों का जो मेरे बाग में हैं

©DR. LAVKESH GANDHI
  # नफरत के फूल #
#मैं गुनहगार हूँ फूलों का #

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