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जीवन दिन नदी के पानी-सा बह जाता है क्षण अंजुरी मे

जीवन

दिन नदी के पानी-सा
बह जाता है
क्षण अंजुरी में आकर
पारे-सा
फिसल जाता है/
कैसे बाँधू?
जीवन को शब्दों में
जीवन का अर्थ
रोज बदल जाता है।
('बूढ़े पिता और आम का पेड़' काव्य संग्रह से साभार)

©सतीश तिवारी 'सरस' 
  #डॉ_प्रकाश_जी_डोंगरे_की_कविता