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#OpenPoetry हो ज्वाला मानो सिमटी जिसमें, पर गंगा ज

#OpenPoetry हो ज्वाला मानो
सिमटी जिसमें,
पर गंगा जैसी हो 
काया,
करे जो उद्घोष
दुर्गा सा,
वाणी में जिसकी 
जैसे सरस्वती की छाया।
करती अभिनंदन बलिदान का,
वो हिमालय की पुत्री,
केवल पक्षधर ही नहीं,
विरोधी भी करते उसकी श्रुति
जो भी पुकार उठे मदद को,
बिन देर किए थी वो सुनती।
देकर मुस्कान चेहरों पर,
एहसान नहीं कभी गिनती।
जाने आज क्या हुआ, 
क्यूं दुआएं काम न आयी।
आयी तो बस ख़बरें आयी
पर युग शक्ति तुम नहीं आई।
जो रोक पाते हम चक्र समय का
तो आज नहीं हिचकते
मिल जाते हैं लोग बहुत
पर सुषमाजी आप जैसे 
रोज़ नहीं मिलते। #ripsushmaji #idol
#OpenPoetry हो ज्वाला मानो
सिमटी जिसमें,
पर गंगा जैसी हो 
काया,
करे जो उद्घोष
दुर्गा सा,
वाणी में जिसकी 
जैसे सरस्वती की छाया।
करती अभिनंदन बलिदान का,
वो हिमालय की पुत्री,
केवल पक्षधर ही नहीं,
विरोधी भी करते उसकी श्रुति
जो भी पुकार उठे मदद को,
बिन देर किए थी वो सुनती।
देकर मुस्कान चेहरों पर,
एहसान नहीं कभी गिनती।
जाने आज क्या हुआ, 
क्यूं दुआएं काम न आयी।
आयी तो बस ख़बरें आयी
पर युग शक्ति तुम नहीं आई।
जो रोक पाते हम चक्र समय का
तो आज नहीं हिचकते
मिल जाते हैं लोग बहुत
पर सुषमाजी आप जैसे 
रोज़ नहीं मिलते। #ripsushmaji #idol
tarundogra4415

Tarun Dogra

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