व्यर्थ समय बातो में करना नादानी सा लगता है बिन लक्ष्य प्राप्ति रातो में सोना बेईमानी सा लगता है पवन के झोंको से भी अब अनबन सी हो चली है मेरी मुझको हर ज़र्रा ज़र्रा अब तूफानी सा लगता है सूर्य किरण सा तेजमान यूँ ही "अक्स" नहीं मिलता मेरे आँसू का हर कतरा मुझको अब पानी सा लगता है -अक्स