ज़रा ज़रा सी रोशनी बची है चिराग़ों में , फिर भी अंधेरों से जंग जारी है। दीए की लौ आखरी सांसो से लड़ रही है, पता नहीं हिम्मत कहां से आ रही है। जिसका वज़ूद ही है परोपकारी का, भला वो रोशनी गर्दिशों से कहां हारी है। ©Anuj Ray ज़रा ज़रा सी रोशनी"