इक दिन हमको ऐसी खुमारी छायी जब हमने भांग की गोली खायी भूले खुद को और भूले अपनी लुगाई घर जब पहुँचे तो खूब हुई कुटाई यूँ तो हम बड़े भोले भाले हैं नई दिल्ली के रहने वाले हैं अपनी बीवी की पूजा करते हैं उसकी आवाज़ से भी डरते हैं थोड़ी सी बदमाशी फिर भी करते हैं कभी कभी बाहर की घाँस चरते हैं चरित्र हमारा थोड़ा सा ढीला हैं और अंदाज़ हल्का सा रसीला हैं उस दिन मौसम बड़ा रंगीन था दिल किसी की याद में गमगीन था हमने भांग की गोली मंगवाई ले भोले का नाम अंदर टपकाई दो घंटे हमको कुछ भी नहीं हुआ भाई फिर एकदम से भांग ने सर पर करी चढ़ाई कभी हँसते थे कभी घबराते थे फालतू में ही बोले चले जाते थे दिल की धड़कन सुरसा सी बढ़ी जाती थी सामने बीवी गदा लिए नजर आती थी काफी मजे भी आ रहे थे पैर से हम सर खुजा रहे थे मन हुआ अब दरियागंज जायेंगे सुलेमान की मच्छी खायेंगे फिर यूँ लगा जैसे हाथ गायब हो गए अजब से गजब हम अजयाब हो गए ©YashMehta अब भांग नहीं खायेंगे -१ #Phone