बचपन और कागज़ की कश्ती कागज की कश्ती में,बहारो की मस्ती में हम चल पड़ते थे उन लहरो की बैचेन बस्ती में नि कोई मंजिल होती थी हम पहुँच जिते थे खुशियों की सर परस्ती में कश्ती हमारी लहरों से बात करती हम उसको देखकर इठलाते लहरो से हारकर कश्ती भीगा कागज बन जाती थी तब हम उसको बाहर लाते उसे सुखाते,फिर से बहाते बस ईसी तरह हम अपने बचपन में बारिश का दिन बिताते। #kashtiaurmasti