ना मै जमाने का हुआ ... ना मै, मेरा ही हुआ ! सफर ये चार रोज़ का कुछ यूं गुज़र हुआ... कभी मंदिर का दीया जलाता रहा ! कभी चाशनी चाँद की चखता रहा ! कभी रंगों मे खुशबु तो कभी खुशबु मे रंग ढूँढता रहा !! उलझनें सुलझाते, उलझनों से, उलझनों ही मे बसर हुआ ! ज़िन्दगी ❤ ना मै जमाने का हुआ ... ना मै, मेरा ही हुआ ! सफर ये चार रोज़ का कुछ यूं गुज़र हुआ... कभी मंदिर का दीया जलाता रहा ! कभी चाशनी चाँद की चखता रहा !