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ना मै जमाने का हुआ ... ना मै, मेरा ही हुआ ! सफर य

ना मै जमाने का हुआ ...
ना मै, मेरा ही हुआ ! 
सफर ये चार रोज़ का कुछ यूं गुज़र हुआ...

कभी मंदिर का दीया जलाता रहा !
कभी चाशनी चाँद की चखता रहा !

कभी रंगों मे खुशबु तो कभी खुशबु मे रंग ढूँढता रहा !!

उलझनें सुलझाते,
उलझनों से, 
उलझनों ही मे बसर हुआ ! ज़िन्दगी ❤
ना मै जमाने का हुआ ...
ना मै, मेरा ही हुआ ! 
सफर ये चार रोज़ का कुछ यूं गुज़र हुआ...

कभी मंदिर का दीया जलाता रहा !
कभी चाशनी चाँद की चखता रहा !
ना मै जमाने का हुआ ...
ना मै, मेरा ही हुआ ! 
सफर ये चार रोज़ का कुछ यूं गुज़र हुआ...

कभी मंदिर का दीया जलाता रहा !
कभी चाशनी चाँद की चखता रहा !

कभी रंगों मे खुशबु तो कभी खुशबु मे रंग ढूँढता रहा !!

उलझनें सुलझाते,
उलझनों से, 
उलझनों ही मे बसर हुआ ! ज़िन्दगी ❤
ना मै जमाने का हुआ ...
ना मै, मेरा ही हुआ ! 
सफर ये चार रोज़ का कुछ यूं गुज़र हुआ...

कभी मंदिर का दीया जलाता रहा !
कभी चाशनी चाँद की चखता रहा !