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जब से गये तुम छोड़ कर, मधुभास भी आता नहीं, अश्रुपूर

जब से गये तुम छोड़ कर, मधुभास भी आता नहीं,
अश्रुपूरित दल - दीठ से, पतझड़ विरह जाता नहीं,
लिपटा है दर्पण धूल से, अौर अधखुली हैं वेणियाँ,
है मौन धारे चूड़ियाँ और लगतीं हैं ये नूपुर बेड़ियाँ,
खिलती नहीं कलियाँ अधर, श्रृंगार भी भाता नहीं,
अश्रुपूरित दल - दीठ से, पतझड़ विरह जाता नहीं।
मुखरित नीरवता हर दिशा, नि:शब्द लगता व्योम है,
अतिरेक झंझावत बनकर हृदय में लिपटा क्षोभ है,
विस्मृत हुआ संगीत, कोकिल कंठ भी गाता नहीं,
अश्रुपूरित दल - दीठ से, पतझड़ विरह जाता नहीं।
पवमान के स्पर्श से, सुगबुगा उठी फ़िर चेतना,
रक्तकणिकाओं में केवल, बह रही है अति वेदना,
मृतपाय जीवन, श्वास का भी भार सह पाता नहीं,
अश्रुपूरित दल - दीठ से, पतझड़ विरह जाता नहीं..।। "मधुभास = बसंत ऋतु"   
"दल-दीठ = दोनों नेत्र"
"वेणियाँ = चोटी (braid)"
"नूपुर = घुँघरू(anklet)
"अधर = ओंठ"
"नीरवता = ख़ामोश विरक्ति शब्दहीनता"
"व्योम = आकाश"
"अतिरेक = ज़रूरत से जादा(excess)"
जब से गये तुम छोड़ कर, मधुभास भी आता नहीं,
अश्रुपूरित दल - दीठ से, पतझड़ विरह जाता नहीं,
लिपटा है दर्पण धूल से, अौर अधखुली हैं वेणियाँ,
है मौन धारे चूड़ियाँ और लगतीं हैं ये नूपुर बेड़ियाँ,
खिलती नहीं कलियाँ अधर, श्रृंगार भी भाता नहीं,
अश्रुपूरित दल - दीठ से, पतझड़ विरह जाता नहीं।
मुखरित नीरवता हर दिशा, नि:शब्द लगता व्योम है,
अतिरेक झंझावत बनकर हृदय में लिपटा क्षोभ है,
विस्मृत हुआ संगीत, कोकिल कंठ भी गाता नहीं,
अश्रुपूरित दल - दीठ से, पतझड़ विरह जाता नहीं।
पवमान के स्पर्श से, सुगबुगा उठी फ़िर चेतना,
रक्तकणिकाओं में केवल, बह रही है अति वेदना,
मृतपाय जीवन, श्वास का भी भार सह पाता नहीं,
अश्रुपूरित दल - दीठ से, पतझड़ विरह जाता नहीं..।। "मधुभास = बसंत ऋतु"   
"दल-दीठ = दोनों नेत्र"
"वेणियाँ = चोटी (braid)"
"नूपुर = घुँघरू(anklet)
"अधर = ओंठ"
"नीरवता = ख़ामोश विरक्ति शब्दहीनता"
"व्योम = आकाश"
"अतिरेक = ज़रूरत से जादा(excess)"