-:मजदूर का वादा :- तेरी बेरुखी के बदले तुझे सुकून से सुलाया नींद को अपनी पलकों के ताक पे रखकर। चराग सा जलकर रौशन जहां किया तेरा खुद को अंधेरों में दफनकर। क्षण-क्षण, कण-कण तेरा भूख मिटाया खुद को पल-पल भूखा रखकर। छाती पर रख ईंट अपनी, तेरी अट्टालिकाएं बनायी तपती धूप में खुद को दिन रात तपाकर। तेरी मंजिल के लिए तेरी सड़कें बनायी मंजिल से मैं अपनी विपथ होकर। तेरे परिवार-बच्चों को सहारा दिया अपनों से दूर अपनों को बेसहारा कर। तुझे तुझसे और तेरे सपनों से मिलाया हर पल, हर सांस,हर रक्त अपना अदाकार। लेकिन ऐ शहर! अब तू इसे पाने से रहा क्योंकि ... तब तो था , पर अब तेरा मजदूर नहीं रहा। मैं अब चल पड़ा हूं वापस अपने गाँव की ओर बड़े ही नहीं, ऐ नन्हें पांव भी अपनी खुशियों की ओर। गर मिट गया गाँव की मिट्टी में तो खुशनसीब समझूंगा तेरा तो बदला ही है नसीब अपना भी बदलूंगा। एक वादा है अब भी तुझसे ऐ शहर! गर लौट सका तो जरूर लौटूंगा फिर से उम्मीदों का शहर बसाने को तुझे तेरी मंजिल तक पहुँचाने को तूझे तूझसे मिलाने को तेरे सपनों में पंख लगाने को क्योंकि .... मेरी आदत जो हो गयी है सब कुछ भुलाने को ।। ।। By: A.K GAUTAM (17/05/2020) Flux Hale