पल्लव की डायरी भावनाओ में बहकर,हर बार ठगी गयी हूँ कहाँ तक निभाऊं रिश्ता, बोझ तले दबी हुयी हूँ सहज होकर,कोई कीमत नही बची है मेरे ख्वाबो की यहाँ पर खूब मरम्मत की गयी है लूटी पिटी जन्नत यहाँ दिखती है तंग अब सबकी औकाते दिखती है कोई खिलौना कोई खेल समझता है अश्क पी पीकर जीवन कटता है हर धुरी पर मुझे नचाया गया है हर बार आँसुओ में मुझे डुबाया गया है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #ashq हर धुरी पर मुझे नचाया गया है #ashq