बचपन का प्यार **************** अबोध था मन, साथ उसका ही प्यारा लगता था, वो पास घंटों बैठी रहती, तो वक्त हमारा लगता था। बचपन की दोस्ती सकून भरी, सुंदर नजारा लगता था, कहने भर से हो जाते थे, दुख दूर मेरे, इतना मासूम लगता था। वो यादों की गुलक में ना जाने कितने सिक्के होते है, उनसे खरीद नहीं सकते हम पर दुःख में मरहम लगता था। कभी नहीं भूलता, पता है क्यों, मासूम अदा सी होती है, जिस्मों की भूख नहीं, मासूम अदा नज़रें भी भेद सारे खोलती है। प्यार उसका,जीवन आधार, विश्वास उसका जैसे आत्म-बल, स्पर्श उसका मेरे जज़्बात, साथ उसका जैसे प्रभात, होना उसका मेरा शृंगार,जीवन उसका मेरा संसार। #कोराकाग़ज़ #colabwithकोराकागज़ #बचपनकाप्यार