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किसी ने किसी को ही मिलकर हैं लूटा हमें तो अपनों ने

किसी ने किसी को ही मिलकर हैं लूटा
हमें तो अपनों ने ही मिलकर हैं लूटा

कितना भी दूर रहता हूँ उन लोगों से 
पर किसी बहाने से बुलाकर हैं लूटा

बहुत तब्दीलिया ला रहा हूँ मैं अपने अन्दर 
फिर भी मुहब्बत में रिझाकर हैं लूटा

कैसे उन लोगों को भूल सकता हूँ मैं 
आरिफ वो कितने कमीने थे जो दबाकर हैं लूटा ।। किसी ने किसी को ही मिलकर हैं लूटा
हमें तो अपनों ने ही मिलकर हैं लूटा

कितना भी दूर रहता हूँ उन लोगों से 
पर किसी बहाने से बुलाकर हैं लूटा

बहुत तब्दीलिया ला रहा हूँ मैं अपने अन्दर 
फिर भी मुहब्बत में रिझाकर हैं लूटा
किसी ने किसी को ही मिलकर हैं लूटा
हमें तो अपनों ने ही मिलकर हैं लूटा

कितना भी दूर रहता हूँ उन लोगों से 
पर किसी बहाने से बुलाकर हैं लूटा

बहुत तब्दीलिया ला रहा हूँ मैं अपने अन्दर 
फिर भी मुहब्बत में रिझाकर हैं लूटा

कैसे उन लोगों को भूल सकता हूँ मैं 
आरिफ वो कितने कमीने थे जो दबाकर हैं लूटा ।। किसी ने किसी को ही मिलकर हैं लूटा
हमें तो अपनों ने ही मिलकर हैं लूटा

कितना भी दूर रहता हूँ उन लोगों से 
पर किसी बहाने से बुलाकर हैं लूटा

बहुत तब्दीलिया ला रहा हूँ मैं अपने अन्दर 
फिर भी मुहब्बत में रिझाकर हैं लूटा