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आंखें दरिया की प्यास, लब छलकता सहरा है इस उथले हुए

आंखें दरिया की प्यास, लब छलकता सहरा है
इस उथले हुए शहर मे आखिर कोई तो गहरा है

तवज्जो इतना ही है मेरे खतों का तेरे दर पर
चिराग रख आयें वहां जहाँ सूरज का पहरा है

जो सफीना चलायी थी वो अचानक रुक गयी
अब कौन देखने जाये पानी कहां पर ठहरा है

आवाजें तूने भी दी होंगी चीखा मै भी खूब था
अब क्या बहस करना कि सच मे कौन बहरा है #मैं_और_वो
आंखें दरिया की प्यास, लब छलकता सहरा है
इस उथले हुए शहर मे आखिर कोई तो गहरा है

तवज्जो इतना ही है मेरे खतों का तेरे दर पर
चिराग रख आयें वहां जहाँ सूरज का पहरा है

जो सफीना चलायी थी वो अचानक रुक गयी
अब कौन देखने जाये पानी कहां पर ठहरा है

आवाजें तूने भी दी होंगी चीखा मै भी खूब था
अब क्या बहस करना कि सच मे कौन बहरा है #मैं_और_वो
anshmishra3781

Ansh Mishra

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