चल रहा था मैं राहों पर एक भटके मुसाफिर की तरह जिन्दगी चल रही थी गुमनाम समन्दर की तरह चलते चलते रोका सुनसान राहों पर मुझे उसने माँगी थी lift उसने कुछ दूर की रास्ता था वो कुछ दूर का पर भर गया था सफर वो नूर का उन पलों में दिल झूम सा गया जिन्दगी को खुशी की तरह चूम सा गया मानों आज जिन्दगी पहली बार जी थी मगर फिर आ गया गन्तव्य उसका कुल पलों को वो ख़ास बना गयी मुझे वो जीने का मतलब सीखा गयी फिर पाकर कुछ देर की खुशी मैं चल पङा फिर बिन मन्जिल ही राहों पर