उठती नहीं निगाह अब,किसी और की तरफ़ पाबंद कर गई है मुझे,कोई नज़र इस कदर होकर भी दूर हमसे,दूर वो लगती क्यूं नहीं मिलती भी वो कहां है,जिसे ढूंढू मैं दर-ब-दर वो रात की शायरी है,मैं सुबह की हूं गज़ल वो लफ़्ज़ों की झील गहरी,मैं उस झील का कमल अंजाम भी वही है,सरंजाम भी वही है वो ओस है सुबह की,मैं प्यासा सा हूं शजर कोई आहट भी नहीं है,कोई सरसराहट भी नहीं है आईने को भी शायद,किसी की लग गई है नज़र सबकुछ मिल गया है,बस कुछ रह गया है वो मेरा ही है हिस्सा,जिससे मैं हूं बेख़बर... *शजर- पेड़,वृक्ष © abhishek trehan #abhishektrehan #manawoawaratha #zindagikasafar #nigahe #shayari #kavita #ishq #yqdidi