भूली बिसरी यादों की, तहकीकात की रात थी। ज़ेहन में तेरा ज़िक्र था और यादों की बारात थी। तुझे याद करने को हम, फुरसत से ही बैठे थे। आँखों में आँसू थे और यादों की शुरुआत थी। वो भी क्या दिन थे, जवानी की दहलीज पे थे। तुझे देख खुश होते थे, इश्क़ की शुरुआत थी। तेरी गलियों का चक्कर, हम दिन रात काटते थे। आँखों को तेरी एक झलक, दिलाने की बात थी। हुई इश्क़ की नवाज़िश ऐसी, तुमसे मुलाकात हुई। क्या हसीन पल थे वो, एक बरसात की रात थी। मिलने जुलने का सिलसिला, बदस्तूर जारी रहा। तुम्हारे इतने करीब आ गए, जज्बात की बात थी। न जाने हम दोनों के दरमियाँ, क्यूँ ये दूरी आ गई। दूर तुमसे इस तरह हुए, जैसे कोई खास बात थी। भूली बिसरी यादों की, तहकीकात की रात थी। ज़ेहन में तेरा ज़िक्र था और यादों की बारात थी। ♥️ Challenge-797 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।