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खुद-की-खुशी किलकारियों सा खेलता ये मन अब शांत ही

खुद-की-खुशी
किलकारियों सा खेलता ये मन 
अब शांत ही अच्छा लगता हैं!
ना जाने क्यों अब अकेलापन 
ही बड़ा अच्छा लगता हैं!
चुभती हैं! बातें सबकी 
हमारा कहना भी सबको
 अच्छा नही लगता हैं,
ना जाने क्यों अब अकेलापन
ही बड़ा अच्छा लगता हैं!
धुंधला सा मंजर ही इस दुनिया में
अच्छा लगता हैं,
साफ-साफ दिखे तो दुनिया 
का श्रृंगार भी कच्चा लगता हैं!
शोर से भरे इस मन में 
अब खामोशी ही सच्चा लगता हैं !
दिल को समझा लिया तु गंभीर ही 
बड़ा जचता लगता है!
ना जाने क्यों अब अकेलापन
ही बड़ा अच्छा लगता हैं............

©Sanskriti Jha  #OpinionandThought #ownlife #StruggleStory
खुद-की-खुशी
किलकारियों सा खेलता ये मन 
अब शांत ही अच्छा लगता हैं!
ना जाने क्यों अब अकेलापन 
ही बड़ा अच्छा लगता हैं!
चुभती हैं! बातें सबकी 
हमारा कहना भी सबको
 अच्छा नही लगता हैं,
ना जाने क्यों अब अकेलापन
ही बड़ा अच्छा लगता हैं!
धुंधला सा मंजर ही इस दुनिया में
अच्छा लगता हैं,
साफ-साफ दिखे तो दुनिया 
का श्रृंगार भी कच्चा लगता हैं!
शोर से भरे इस मन में 
अब खामोशी ही सच्चा लगता हैं !
दिल को समझा लिया तु गंभीर ही 
बड़ा जचता लगता है!
ना जाने क्यों अब अकेलापन
ही बड़ा अच्छा लगता हैं............

©Sanskriti Jha  #OpinionandThought #ownlife #StruggleStory