आज का सफर नानी के साथ था, और मैने 24 से 84 की जिंदगी देखी, वो बचपन देखा जब बार बार वो मुझे स्टेशन के नाम पूछती , भले ही मैने सारे बता दिए हो ! लेकिन हर 2 मिनट बाद " दीपवा कवन स्टेशन आए बा " ? जैसे कोई बच्चा देखता है, एकटक , बस उसी तरह वो खिड़की के बाहर देखती सब कुछ जाते हुए! मुझे हसीं आती नानी के नादानी पे, पर अच्छा लगता जब वो मेरा हाथ पकड़ के चलती और कहती " थामे रह हमार हाथ " और मैं कहती " तू चिंता जीन कर नानी हम हई ना" और इससे मुझे इस बात पर और विश्वास हुआ के "कुछ भी शाश्वत नही है " ©deepika gupta #यही_तो_ज़िंदगी_है