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लम्हों के बागीचे में फिर वीराना सा है.. गुफ़्तगू य

लम्हों के बागीचे में फिर वीराना सा है.. 
गुफ़्तगू या रूबरू, इस दरमियान,  मुनासिफ नहीं थी शायद....
बहते नीलम सा ये समा, घने बादलों में ढका सा है....
इन्द्र-धनुष,  इस पहर, दीखती नहीं शायद... 
शायद ही बिखरते पलों को गहरी ख़ामोशी अपने आगोश में ले ले....
शायद ही उस पार एक ज़िन्दगी हो.... 
 नई, पेह्तर,मासूम  पर इस ज़िन्दगी से बिलकुल अंजान !! What's Life ?
Um...It starts with day-dreams & ends with ❤️-breaks
लम्हों के बागीचे में फिर वीराना सा है.. 
गुफ़्तगू या रूबरू, इस दरमियान,  मुनासिफ नहीं थी शायद....
बहते नीलम सा ये समा, घने बादलों में ढका सा है....
इन्द्र-धनुष,  इस पहर, दीखती नहीं शायद... 
शायद ही बिखरते पलों को गहरी ख़ामोशी अपने आगोश में ले ले....
शायद ही उस पार एक ज़िन्दगी हो.... 
 नई, पेह्तर,मासूम  पर इस ज़िन्दगी से बिलकुल अंजान !! What's Life ?
Um...It starts with day-dreams & ends with ❤️-breaks
rakeshkumar6664

Rakesh Kumar

New Creator