मगरूर है,, खुद में ही समेटे हुए कंकड़ पत्थरों
को युगों युगों से,,,
नदी बांवरी कर बैठी उस पहाड़ से प्रेम
संपूर्ण यौवन को बिखेरती उसके तन में,,,,
बलखाती इटलाती अपना मधुर प्रेम जल छलकाती
अपना सर्वस्य उस पर लुटा कर उससे करती स्वयंवर,, #NatureLove#नदी_और_स्त्री#ईश्वरकीरचना#पहाडो_की_गोद_में