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एक इबादत शाहजहाँ और मुमताज़ ने लिखी थी, मुश्क-ए-इश

एक इबादत शाहजहाँ और 
मुमताज़ ने लिखी थी,
मुश्क-ए-इश्क की,
एक मैं लिख रही हूँ,
इश्क और प्रेम की,
गौर फरमाएँ....,

ताजमहल की गहराइयों से ,
जब हर रात मुमताज़..
शाहजहाँ की पन्नाह में आती होगी..तो,
अपना संगमरमर का दिल जरूर लाती होगी,
वो श़् भ्र -धवल और मुकम्मल सा दिल,
हाय!क्या रात होती होगी,

सितारों से टिमटिमाती हुई,
दो रूहों की मिलन की रात,
आत्मिक सुकून की रात,
प्रेम की अनंत परिभाषा सी,
इश्क की परिकाष्ठा सी,
शुभ्र,उज्जवल, समर्पित,
प्यासी भी,प्यास भी,
और उस प्यास की तृप्ति भी..।
बयान -ए-हाल की रात,
दीदार-ए-यार की रात,
खुदा की इबादत सी,
आयतों की बारात सी,
हाय!क्या रात होती होगी... व~व~वो।
           - सुनीता डी प्रसाद.💐



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एक इबादत शाहजहाँ और 
मुमताज़ ने लिखी थी,
मुश्क-ए-इश्क की,
एक मैं लिख रही हूँ,
इश्क और प्रेम की,
गौर फरमाएँ....,

ताजमहल की गहराइयों से ,
जब हर रात मुमताज़..
शाहजहाँ की पन्नाह में आती होगी..तो,
अपना संगमरमर का दिल जरूर लाती होगी,
वो श़् भ्र -धवल और मुकम्मल सा दिल,
हाय!क्या रात होती होगी,

सितारों से टिमटिमाती हुई,
दो रूहों की मिलन की रात,
आत्मिक सुकून की रात,
प्रेम की अनंत परिभाषा सी,
इश्क की परिकाष्ठा सी,
शुभ्र,उज्जवल, समर्पित,
प्यासी भी,प्यास भी,
और उस प्यास की तृप्ति भी..।
बयान -ए-हाल की रात,
दीदार-ए-यार की रात,
खुदा की इबादत सी,
आयतों की बारात सी,
हाय!क्या रात होती होगी... व~व~वो।
           - सुनीता डी प्रसाद.💐



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