ऋतु राज है बसंत रस राज है श्रृंगार फागुन की है मस्ती छलका है आंखों में साकी के इश्क अपार ऋतु राज है बसंत रस राज है श्रृंगार रोम -रोम है रोमांच भरा अंग-अंग सुलगे अंगार बीच कलेजे के चमके बिजली, बरसन लागे अमृतधार ऋतु राज है बसंत रस राज है श्रृंगार जितना भीगे बदन हमारा, उतनी सुलगे अंग अंगार चली है कैसी बैरन फागुन की यह मस्त बहार ऋतु राज है बसंत रस राज है श्रृंगार। ©Azaad Pooran Singh Rajawat # ऋतुराज है बसंत