क्या औकात किसी की जो तुझे दर्द दे,, तेरी दुनिया , तेरा आशियाना, तेरी ही हंसी इसमें और तेरा ही फ़साना,,, तूने गर है खुद को जाना तो दुनिया का घंटा है तुझपे कोई फर्क आना,, उठ और अपने बुझे हुए अरमानों को फिर से आग देदे,, क्या औकात किसी की जो तुझे मात दे दे,, क्या औकात किसी की जो तुझे दर्द दे,दे,, क्या औकात किसी की जो तुझे मात दे